कोविड - 19 महामारी ने पूरे देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। हलांकि जब इस महामारी के दौरान टीकाकरण की शुरूआत होने पर एवं बीमारी के आँकड़ों का स्तर नीचे गिरने के उपरांत व्यावसायिक गतिविधियों की पुनः शुरूआत होने पर एक ’नये नाॅर्मल’ 'New Normal' जीवन की शुरूआत भी एक नई आशा के किरण के रूप में प्रस्तुत हुई।
एक ओर जहाँ विभिन्न कार्य प्रणालियों का संचालन गृह कार्य व्यवस्था (work from Home) के द्वारा जारी रखा गया था। वहीं अगर हम शिक्षा व्यवस्था की बात करे तो यह सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी। शिक्षा व्यवस्था की नींव तब और ढ़ीली पड़ जाती है जब हम इसको ग्रामीण विद्यार्थियों के संदर्भ में देखने का प्रयास करते है। शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का कार्यभार नीजि विद्यालयों द्वारा इंटरनेट और ऑनलाइन क्लास के माध्यम से जारी रहा था। परंतु यहाँ विचारनीय तथ्य यह प्रतीत होता है कि उन ग्रामीण विद्यार्थियों की स्थिति क्या रही होगी जहाँ इंटरनेट तो दूर बिजली का होना भी दुर्लभ था। सरकारी विद्यालयों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार किया जाता रहा है परंतु कोविड-19 महामारी के दौर में यह व्यवस्था और भी चरमरा गयी जो कि पहले से ही कमजोर ताने-बाने में बनुी हुई थी।
एक सर्वे: एनुअल स्टेट ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट (ASER) 2019 के अनुसार भारत के 26 ऐसे जिले हैं जहाँ वर्ग पहली के छात्रों में 16% मात्र ऐसे छात्र है जो कि एक उचित स्तर पर शब्दों पढ़ पाते हैं, वही 40% ऐसे छात्र हैं जो कि अंकों या अक्षरों को पहचान तक नहीं पाते। अब ऐसी स्थिति में कोविड-19 की महामारी का प्रभाव इन विद्यार्थियों पर और नाकरात्मक ही होगा।
ग्रामीण माहौल में तकनीकी व्यवस्था की कमी होने के कारण शिक्षण शैली के विकास की समस्या, उचित शिक्षण सामग्री का आभाव एवं इस दिशा में किय जा रहे सरकारी तंत्रों के साकारात्मक प्रयासों की कमी के कारण ग्रामीण छात्रों का भविष्य अधर में जाता प्रतीत हो रहा है।
विभिन्न राज्यों के सरकारो की अपनी अलग-अलग समस्याये है जिन से वह इस कोविड महामारी के दौरान निपटने का प्रयास करते रहे है। परंतु ऐसा कम ही देखा गया है कि सरकारी तंत्र शिक्षा व्यवस्था की ओर कुछ विशेष ध्यानाकर्षित कर पाते है। उदारहण स्वरूप देख सकते है कि बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़िसा एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के ग्रामीण विद्यालयों का शिक्षण स्तर काफी प्रभावित हुआ है। वही अगर दक्षिण भारतीयों राज्यों की चर्चा करे तो केरल, तमिलनाडू, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी समस्याएं उत्पन्न हुई परंतु वहाँ इसे सुलझाने का प्रयास किया गया एवं विभिन्न संस्थानो, सहकारी समूहो, स्वयंसेवी समाजों द्वारा एक साथ कार्य करने के उपरांत इस समस्या से निजात पाया गया। केरल का कोविड - 19 महामारी के दौरान शिक्षा माॅडल काफी सराहनीय रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है जहाँ एक उच्च विद्यालय के छात्र की खुदकुशी का मामला सामने आया क्योंकि उसके पास डिजीटल उपकरण न होने से वह हताश हो गया। इस उपरांत सरकारी प्रयासों से वहाँ ग्रामीण स्तर पर भी सभी घरों में यह सुनिश्चित किया गया कि शिक्षा हेतु डिजिटल माध्यम की पहुँच होना आवश्यक है। इस कमी को पूरा करने के लिए टी॰वी॰ सेट का एवं मोबाईल का वितरण कराया गया या फिर सामुदायिक स्तर पर बड़े हाॅल/स्थान में डिजिटलीकरण के माध्यम से सामूहीक शिक्षा का प्रसार किया गया।
यहाँ हमने डिजीटल डिविडेट का एक मुद्दा सामने प्रस्तुत होता देखा। कई ऐेसे राज्य है जहाँ के ग्रामीण विद्यालयों में एवं वहाँ के छात्रों के पास शिक्षा की समस्या इसलिए भी बढ़ गयी है कि उनके पर तकनीकी ज्ञान एवं डिजीटल उपकरणों के माध्यम से उचित शिक्षण सामग्री की पहुँच नहीं हो पाती है। तकनीकी ज्ञान का आभाव, आधारिक संरचना का आभाव, विद्यालयों की कमी आर्थिक दबाव, तकनीकी उपकरणों के आभाव ने इस कोविड के दौरान ग्रामीण छात्रों की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को दयनीय बना कर छोड़ दिया है। लैंगिक विभेद भी यहाँ काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जिसके आधारपर कहा जा सकता है कि ग्रामीण छात्राओं का पहले से ही विद्यालयों में नामांकन का स्तर निम्न रहा है परंतु अब मार्च 2020 को विड के उपरांत यह नामांकन स्तर और भी नीचे चला गया है।
सरकारी प्रयासों में दिक्षा (DIKSHA) और (SWAYAM) जैसे प्रोग्राम के द्वारा छात्रों के बीच शैक्षिक मौकों को और भी प्रखर करने का प्रयास किया जा रहा है परंतु यह प्रयास ग्रामीण स्तर तक पहुँच पाये इसकी पुष्टि भी सरकारी तंत्रों को करनी होगी। आंगनबाड़ी के माध्यम से समग्र शिक्षा की व्यवस्था को और भी सूचारू रूप देने का प्रयास किया जाना चाहिए। यहाँ डिजिटल लाभांश को भी बढ़ाने की आवश्यकता है जो कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के फर्क को कम करे एवं सभी के लिए शिक्षा का उचित अवसर उपलब्ध करा सके।
सरकारी तंत्र, काॅर्पोरेट घरानों, समुदायिक स्तर पर संस्थानों इत्यादि को इस दिशा में एक साथ कार्य करके इस समस्या के समाधान को ढूंढना होगा। भारत में अगर डिजिटल डिवाइड की बात करे तो मात्र 24% ऐसे घर होंगे जहाँ इंटरनेट के कनेक्सन मौजूद है। बात अगर ग्रामीण क्षेत्रों की हो तो 80% से अधिक ग्रामीण विद्यालयों के छात्र इस महामारी से प्रभावित
हुए हैं जो कि मुख्य रूप से उड़ीसा, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के जिलों से आते है। अतः इस समस्या के समाधान हेतु सभी निकायों, नीजि संस्थानों एवं सरकारी तंत्रों की सकारात्मक रूप से कदम उठाने ही होंगे तब ही कहीं एक आशा की किरण नजर आ सकती है एवं ऐसे छात्रों का भविष्य सुधर सकता है जो कि पहले से ही अधर में लटका हो।
एक सर्वे के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों का शिक्षित न होना भी एक मुख्य कारण बन रहा है जो कि छात्रों के शिक्षण स्तर को प्रभावित कर रहा।
निष्कर्षता कहा जा सकता है कि कोविड महामारी ने क्लासरूम के शिक्षण व्यवस्था पर विराम लगा दिया है परंतु ऑनलाइन शिक्षिण सामग्री एवं लाइव विडियो क्लासरूम ने एक नया रास्ता प्रस्तुत किया है जिस पर शिक्षण व्यवस्था का नवीन आधार टिका हुआ है। यह देखा गया है कि ग्रामीण स्तर पर अभी डिजिटल एज्युकेशन की समस्या का पूरी तरीके से समाधान नहीं हो पाया है परंतु इस क्षेत्र में लगातार कार्य किये जा रहे है जिससे कि ग्रामीण छात्रों तक शिक्षण व्यवस्था को सुचारू रूप से पहुँचाया जा सके। यह भी काफी सराहनीय प्रतीत होता है कि इस महामारी के दौरान कई ऐसे ग्रामीण स्तर के विद्यालय एवं संस्थानों ने अपने विद्यार्थियों के लिए पूर्ण रूपेण e−शिक्षिण एवं e−शिक्षा सामग्री की व्यवस्था को जारी रखा। परंतु अभी भी कई ऐसे पिछड़े राज्यों की चरमरायी व्यवस्था से मुँह नहीं फेरा जा सकता हैं। यहाँ विद्यमान समस्यायो ने पहले से भी शिक्षिण व्यवस्था को प्रभावित कर रखा था एवं इस दौरान कोविड महामारी ने इनकी पोल खोल के रख दी।
परंतु ऐसा कहा जाता है कि आशा और उम्मीद ही एक ऐसी व्यवस्था है जिसके आधार पर सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि ग्रामीण स्तर
पर भी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य व्यवस्थाओं में समावेशी रूप से जो विकास की प्रक्रिया अपनायी जा रही है उससे आगे आने वाले वर्षों में भी एवं वर्तमान की इस महामारी के दौर में भी सरकारी प्रयासो, विभिन्न उद्यमों में होने वाले नवाचारों एवं एकजुट प्रयासों से डिजिटल तकनीकी व्यवस्था एवं ऑनलाइन लर्निंग को सबके लिए सुलभ एवं सस्ती बनाने का प्रयास
किया जा रहा है।